संदीप मुरारका ने राज्यपाल को भेंट की आदिवासियों पर लिखी अपनी पुस्तक

संदीप मुरारका ने राज्यपाल को भेंट की आदिवासियों पर लिखी अपनी पुस्तक

रांची, 12 मार्च . राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन से आदिवासी समुदाय के सकारात्मक पहलुओं पर लिखनेवाले जमशेदपुर (Jamshedpur) के लेखक संदीप मुरारका और डॉ राम मनोहर लोहिया रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष अभिषेक रंजन सिंह ने रविवार (Sunday) को मुलाकात की. लेखक संदीप मुरारका ने गवर्नर को आदिवासियों पर लिखी गयी अपनी पुस्तक देश के 105 विशिष्ट जनजातीय व्यक्तित्व भेंट की. इस पुस्तक में पद्म पुरस्कारों के सम्मानित 76आदिवासी व्यक्तित्वों के साथ-साथ परमवीर चक्र, महावीर चक्र, ध्यानचंद अवार्ड एवं नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित विभूतियों के बारे में बताया गया है.

मौके पर राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने कहा कि आदिवासी हमारे लिये प्रेरणास्त्रोत हैं, क्योंकि परस्थितियों के विपरीत होने के बावजूद अपने कठिन संघर्ष से वे सफलताओं का परचम लहरा रहे हैं. संदीप मुरारका शॉर्ट बॉयोग्राफी और फीचर के जरिये लगातार प्रेरक आदिवासी चरित्रों से पाठकों को रुबरु करा रहे हैं. उन्होंने 23 राज्यों की लगभग 52 जनजातियों के विख्यात आदिवासियों पर कॉफी टेबल बुक लिखी है.

देश के 105 विशिष्ट जनजातीय व्यक्तित्व शीर्षक के नाम से प्रकाशित कॉफी टेबल बुक में वैसे आदिवासियों का परिचय समाहित है. इस सचित्र रंगीन पुस्तक का प्रकाशन हिंदी भाषा में कोलकाता (Kolkata) के विद्यादीप फाउंडेशन की ओर से किया गया है. साथ ही अंग्रेजी, ओड़िया, पंजाबी, मगही, भोजपुरी और संताली में इसका अनुवाद किया गया है.

आदिवासियों पर तीन पुस्तकें लिख चुके हैं मुरारका

संदीप मुरारका पहले भी आदिवासियों पर तीन पुस्तक लिख चुके हैं. उनकी पुस्तकें ‘शिखर को छूते ट्राइबल्स भाग एक से तीन’ शोधार्थियों और यूपीएससी के छात्र-छात्राओं के बीच काफी लोकप्रिय हो चुकी हैं. यह पुस्तक ऑनलाइन प्लेटफार्म पर बेस्टसेलर का दर्जा प्राप्त कर चुकी है. संदीप मुरारका पाठकों को बताते हैं कि सफलता के लिये संसाधनों की नहीं बल्कि संकल्प की आवश्यकता है.

संदीप मुरारका ने कहा कि जब भी हम आदिवासियों की बात करते हैं, तो बताया जाता है कि उनकी दुनिया हाशिये पर है, वे भूखे नंगे वंचित हैं, वे शहर कस्बे की बजाये जंगलों, नदी तालाब के पास या पर्वतों व कंदराओं में रहते हैं. वे दुनिया के तमाम आधुनिक सुख-सुविधाओं से महरूम हैं और समाज की मुख्यधारा से अलग विचरते हैं, लेकिन वास्तविकता इससे विपरीत है. जनजातीय संस्कृति हमेशा से समृद्व रही है और यह समुदाय सामाजिक गतिशील रहा है. शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा, जिसमें जनजातियों की महत्वपूर्ण भूमिका ना हो. विशेषकर संस्कृति, नृत्य, गीत, प्राकृतिक अनुसंधान, खेल और अन्य साहसिक कार्यों में इनका योगदान अतुलनीय है.

/वंदना