
वाराणसी (Varanasi) ,13 मार्च . धर्म नगरी काशी में 15 मार्च बुधवार (Wednesday) को शीतलाष्टमी मनाई जाएगी. पर्व में घर-घर और देवी मंदिरों में भी माता शीतला की पूजा होगी. माता रानी को बसिऔरा का भोग लगाया जायेगा. सोमवार (Monday) को घरों के साथ शीतला मंदिरों में भी पर्व की तैयारियां चलती रही. घरों में श्रद्धालु महिलाएं साफ-सफाई और व्रत के लिए प्रसाद बनाने के इंतजाम में जुटी रही.
शीतलाष्टमी पर्व रोगों को दूर करने की कामना से मनाया जाता है. सनातनी परिवारों में मान्यता है कि शीतलाष्टमी व्रत रहने से दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक ज्वर, दुर्गंधयुक्त फोड़े, चेचक, नेत्रों के समस्त रोग, शीतला की फुंसियों के चिह्न तथा शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं. इस व्रत के करने से मां शीतलादेवी प्रसन्न होती हैं.
शिवाराधना समिति के अध्यक्ष डॉ मृदुल मिश्र ने बताया कि शीतला अष्टमी के साथ मां शीतला को बासी भोजन का भोग लगाने का विधान है. ऐसे शास्त्रों में वर्णित है. यह भोग सप्तमी तिथि की शाम को बनाया जाता है. यह भोग चावल-गुड़ या फिर चावल और गन्ने के रस से मिलकर बनता है. इसके साथ ही मीठी रोटी का भोग बनता है. शीतला सप्तमी पर्व का उल्लेख स्कंद पुराण में है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी शीतला मां दुर्गा का ही अवतार हैं. देवी शीतला प्रकृति की उपचार शक्ति का प्रतीक है. मां शीतला के स्वरुप को कल्याणकारी माना जाता है. माता का वाहन गर्दभ है. उनके हाथों में झाड़ू, कलश, सूप और नीम की पत्तियां होती है. लोग अपने बच्चों और परिवार के सदस्यों को छोटी माता और चेचक जैसी बीमारियों से पीड़ित होने से बचाने के लिए शीतला माता की पूजा करते हैं.
शास्त्रों के अनुसार, होली के आठवें दिन शीतला अष्टमी का व्रत रखा जाता है. चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी मनाई जाती है. चैत्र मास की अष्टमी तिथि का प्रारंभ 14 मार्च को रात 08:22 बजे से हो रही है. इसका समापन 15 मार्च 2023 की शाम 06:45 बजे होगा. ऐसे में उदयातिथि के अनुसार यह त्योहार 15 मार्च को मनाया जाएगा.
/श्रीधर