


पलवल, 8 मार्च . भगवान श्रीकृष्ण की नगरी वृंदावन धाम के आसपास का लगने वाला क्षेत्र ब्रज क्षेत्र कहलाता है. इसमें हरियाणा (Haryana) का पलवल जिला भी बृज क्षेत्र का अभिन्न हिस्सा है. पलवल और आसपास के रहने वाले लोग भी भगवान श्रीकृष्ण और राधा को पूजते हैं. इसलिए पलवल में भी ब्रज की होली का असर दिखता है. यहां चार से पांच दिन चलने वाले होली उत्सव में स्थानीय लोग जमकर त्योहार मनाते हैं. बुधवार (Wednesday) को भी यहां होली का उल्लास छाया रहा. यहां 9 मार्च को होने वाले हुरंगा के लिए लोगों में उत्साह है, वहीं पुलिस (Police) के व्यवस्था बनाए रखने के लिए व्यापक इंतजाम किए हैं
बड़े बुजुर्गों में मुरारी लाल गोयल का कहना है कि ब्रज में होली से जुड़ी परंपराओं का निर्वहन बसंत पंचमी के दिन से ही शुरू हो जाता था, जब मंदिरों व चौराहों पर होली जलाए जाने वाले स्थानों पर होली का डांढ़ा (लकड़ी का टुकड़ा, जिसके चारों ओर जलावन लकड़ी, कंडे, उपले आदि लगाए जाते हैं) गाड़ा जाता है.
आचार्य विजय गौड़ ने बताया कि उसी दिन से मंदिरों में ठाकुरजी को प्रसाद के रूप में अबीर, गुलाल, इत्र आदि चढ़ाना और श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में यही सामग्री बांटना शुरू हो जाता है. इसके साथ ही मंदिरों में रोज सुबह-शाम होली के गीतों का गायन भी आरंभ हो जाता है. यह क्रम रंगभरी एकादशी तक जारी रहता है, जब गीले रंगों की बौछार शुरू होने लगती है.
पलवल के बड़े गांव बंचारी, सौंध,जनोली, औरंगाबाद (Aurangabad), मित्रोल, पृथला आदि गांव में पिचकारी होली बड़े ही धूम धाम से मनाया जाती है. यहां के मंदिरों की रंग-गुलाल वाली होली, पूजन के दो दिन बाद चैत्र मास की द्वितीया (दौज) के दिन बलदेव (दाऊजी) के मंदिर प्रांगण में भगवान बलदाऊ एवं रेवती मैया के श्रीविग्रह के समक्ष बलदेव का प्रसिद्ध हुरंगा खेला जाता है. इसमें कृष्ण और बलदाऊ के स्वरूप में मौजूद गोप ग्वाल की सखियां बनकर आईं भाभियों के साथ होली खेलते हैं. यह सिलसिला बलदाऊ से होली खेलने की अनुमति लेने के साथ शुरू होता है. देवर के रूप में आए पुरुषों का दल एक तरफ, तो भाभी के स्वरूप में मौजूद समाज की महिलाओं का दल दूसरी ओर होता है. दोनों दलों के बीच पहले होली की तान और गीतों के माध्यम से एक-दूसरे पर छींटाकशी होती है. इसके बाद, पुरुषों का दल महिलाओं पर रंग बरसने लगता है. जवाब में महिलाएं पुरुषों के कपड़े फाड़कर उनका पोतना (कोड़े जैसा गीला कपड़ा) बनाती हैं और उनके नंगे बदन पर बरसाने लगती हैं. पोतना की मार शायद बरसाना की लाठियों से भी ज्यादा तकलीफ देने वाली होती है. लेकिन, होली के रंग में डूबे हुरियार टेसू के फूलों से बने फिटकरी मिले प्राकृतिक रंगों से उस मार को भी झेल जाते हैं. इन दिनों मंदिर और चौपालों पर 9 मार्च को आयोजित होने वाले हुरंगा की तैयारियां जोरों पर हैं.
वहीं जिला अधीक्षक राजेश दुग्गल ने बुधवार (Wednesday) को बताया कि हुरंगा के लिये आमजन की सुरक्षा के लिये संबंधित अधिकारियों को मंदिर का दौरा करने के निर्देश जारी कर दिए है.
/गुरुदत्त