”कट कॉपी पेस्ट” ने दिखाई न्यायालय की व्यवस्था तथा गरीब की दशा और दिशा

नाटक का दृश्य
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बेगूसराय (begusarai) , 09 मार्च . संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के प्रायोजन में सोशल एंड कल्चरल वेलफेयर ऑर्गेनाइजेशन बेगूसराय (begusarai) के कलाकारों द्वारा संजय राज द्वारा लिखित एवं निर्देशक नाटक ”कट कॉपी पेस्ट” का सफल मंचन दिनकर कला भवन में किया गया.नाटक के माध्यम से कलाकारों ने न्यायालय की गति एवं लाचारी की ओर इशारा करते हुए समाज में रहने वाले ईमानदार और गरीब व्यक्ति की दशा एवं दिशा पर प्रकाश डाला. नाटक में पार्थ जो एक किसान परिवार से है उस परिवार के जमीन के ठीक आगे बड़े और नामचीन व्यक्ति का 50 एकड़ की जमीन है. जहां वह व्यक्ति शॉपिंग मॉल बनाना चाहता है, लेकिन किसान की जमीन ठीक उस 50 एकड़ जमीन के आगे है.

इस गरीब व्यक्ति को डराया धमकाया जाता है, लेकिन यह अपनी जमीन बेचने को तैयार नहीं होता है. तब एक साजिश और षड्यंत्र के तहत सामाजिक एवं प्रशासनिक तंत्र के दारोगा, डॉक्टर, समाजसेवी और वकील को मिलाकर उसे अपने साथ लेकर एक रणनीति तैयार की जाती है. जिससे उस गरीब ईमानदार व्यक्ति को बर्बाद किया जा सके. दूसरी ओर आरटीआई एक्टिविस्ट राम प्रसाद मिश्र जो कि निर्भीक निडर है और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ हल्ला बोल उसकी पोल खोल करने के लिए जाना जाता है.

उसे मारपीट कर एक पहाड़ी के ऊपर से बोरे में बंद कर दरोगा के द्वारा फेंक दिया जाता है और उसकीहत्या (Murder) के केस में ईमानदार किसान पार्थ को फंसा दिया जाता है. गवाह खरीदा जाता है और सबूत भी तैयार किया जाता है. पार्थ को गिरफ्तार कर दारोगा द्वारा प्रताड़ित एवं ब्लैकमेल किया जाता है. मजबूरन पार्थ गुनाह कबूल कर लेता है. कहानी कोर्ट की ओर आती है.

दोनों वकीलों के बीच जोरदार बहस होने के बाद भी सबूत नहीं होने के कारण जज फैसला पार्थ के विरुद्ध सुना ही रहा था कि आरटीआई एक्टिविस्ट राम प्रसाद मिश्र अचानक कोर्ट में अपनी उपस्थिति देता है. जज को रोकता है और सारी सच्चाई बयां करता है, तब कोर्ट की मजबूरी दर्शकों के सामने आती हैं. अंधा कानून जिसकी कोई अपनी जांच एजेंसी नहीं है. गवाह और सबूत के आधार पर फैसला देने वाला यह न्यायालय हकीकत में लाचार और बेबस है.

पुलिस (Police), प्रशासन, डॉक्टर, वकील के द्वारा प्रस्तुत गवाह सबूत पर आधारित है. अगर यह सब बिक जाए तो निर्दोषों को सजा मिलना मुश्किल नहीं है. न्यायालय की अपनी जांच एजेंसी होनी चाहिए. यह संदेश देती है तथा दारोगा, डॉक्टर, समाजसेवी की गिरफ्तारी हो जाती है और पार्थ को निर्दोष साबित की जाता है. नाटक में दारोगा-इम्तियाजुल हक डब्लू, वकील-दिवाकर कुमार, समाजसेवी-रविशंकर रंक, डॉक्टर-शुभम कुमार के षड्यंत्रकारी भूमिका को दर्शकों ने खूब पसंद किया.

बचाव पक्ष के वकील-अमन कुमार शर्मा, जज-हरि किशोर ठाकुर, पार्थ-फैयाजुल हक, राम प्रसाद मिश्र-हरिश्चंद्र कुमार, सूत्रधार-अनिता कुमारी ने अपने-अपने गंभीर अभिनय से दर्शकों की खूब वाह वाही लूटी. पेशकार-संजय कुमार, हवलदार-दीपक कुमार एवं शशवीर कुमार ने दर्शकों को प्रभावित किया. मंच के पीछे से रूप सज्जा-डॉ. रंजीत सृष्टि, प्रकाश परिकल्पना-चिंटू मुनि, संगीत-अमन शर्मा एवं संजय राज, वस्त्र विन्यास-अमलेश कुमार एवं राधा कुमारी, मंच सज्जा-मनोज कुमार, राहुल कुमार, आकाश कुमार तथा निर्देशन सहयोग-इम्तियाजुल हक डब्लू का था.

मंचन से पूर्व नाटक का उद्घाटन जिला वकील संघ के अध्यक्ष वैद्यनाथ प्रसाद सिंह, जिला अधिवक्ता संघ के महासचिव संजीत कुमार, वरीय अधिवक्ता अजय कुमार उर्फ मुन्ना तथा पूर्व विधान पार्षद भूमिपाल राय ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया.