भोपाल गैस त्रासदीः संविधान बेंच ने खारिज की अतिरिक्त मुआवजे की मांग वाली केंद्र की क्यूरेटिव याचिका

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नई दिल्ली (New Delhi), 14 मार्च . सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) की संविधान बेंच ने भोपाल (Bhopal) गैस पीड़ितों को 7844 करोड़ रुपये अतिरिक्त मुआवजा दिलवाने की केंद्र की क्यूरेटिव याचिका खारिज कर दी है. जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि 1989 में सरकार और कंपनी में मुआवजे पर समझौता हुआ. अब फिर मुआवजे का आदेश नहीं दे सकते.

सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने यह भी कहा कि मुआवजा काफी था. अगर सरकार को ज्यादा मुआवजा जरूरी लगता है, तो खुद देना चाहिए था. कोर्ट ने 12 जनवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुनवाई के दौरान यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) से कहा था कि वो 1989 में हुए समझौते के अलावा भोपाल (Bhopal) गैस पीड़ितों को एक भी पैसा नहीं देगा.

कोर्ट ने केंद्र पर सवाल उठाते हुए कहा था कि त्रासदी की भयावहता पर किसी को कोई संदेह नहीं है. त्रासदी के बाद जो मुआवजे का भुगतान किया गया है, उस पर कुछ सवालिया निशान जरूर है. सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा था कि इस तरह की भयावहता की कल्पना नहीं की जा सकती है. मानवीय दुर्घटना में परंपरागत सिद्धांतों से परे हटकर विचार किया जाना चाहिए. तब कोर्ट ने कहा था कि जब इस बात का आकलन किया गया तो इस तरह का आकलन करने के लिए आखिर कौन जिम्मेदार था.

जस्टिस कौल ने कहा कि कल भी हमने पूछा था कि जब केंद्र सरकार (Central Government)ने फैसले को लेकर पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं की है तो वह क्यूरेटिव पिटीशन कैसे दाखिल कर सकते हैं. कोर्ट ने कहा था कि शायद इस मामले को तकनीकी रूप से न देखा जाए, लेकिन हर एक विवाद का कहीं तो अंत होना ही चाहिए. जस्टिस कौल ने कहा कि इस मामले में 19 साल पहले समझौता हुआ था. उस पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की जा सकती थी, लेकिन सरकार द्वारा कोई पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं की जाती है. अब केंद्र सरकार (Central Government)इस मामले पर क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल करती है. घटना के तीन दशक बीत जाने के बाद केंद्र द्वारा क्यूरेटिव क्षेत्राधिकार का प्रयोग कैसे हो सकता है.

यूनियन कार्बाइड फैक्टरी से 2 और 3 दिसंबर 1984 की मध्यरात्रि को जहरीली गैस का रिसाव हुआ था, जिसमें तीन हजार से अधिक लोगों की मौत हो गई और एक लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे. 1989 में हुए समझौते के समय 715 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया गया था. केंद्र सरकार (Central Government)ने 2010 में अतिरिक्त मुआवजे की मांग करते हुए क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल की थी.

भोपाल (Bhopal) की अदालत ने 7 जून, 2010 को यूनियन कार्बाइड के सात अधिकारियों को दो साल की सजा सुनाई थी. इस मामले में यूनियन कार्बाइड के तत्कालीन चेयरमैन वारेन एंडरसन मुख्य आरोपित था. इस मामले की सुनवाई करने वाली संविधान बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी शामिल हैं.

/संजय