
जोधपुर (Jodhpur) , 13 मार्च . जिले के निकटवर्ती बिलाड़ा तहसील के कापरड़ा गांव में शीतला अष्टमी पर पूजा के लिए गड्ढा खोदकर मूर्ति निकाल कर पूजा होती है. पूजा के बाद फिर से मिट्टी से गड्ढा भर दिया जाता है. करीब 6 से 7 फीट गहरा गड्ढा खोद कर माता की मूर्ति की पूजा करते हैं. गांव वालों का कहना है कि मेघवाल समाज के मौहल्ले में 30 साल पुराना शीतला माता का थान है. इसे अन्य स्थान पर प्रतिष्ठित करने के लिए मुहूर्त नहीं निकला इसलिए इसे कहीं ओर प्रतिष्ठित नहीं किया गया है.
घरों के बीच सङक के 5 फिट नीचे जमींदोज है शीतला माता का थान, गांव वाले हर साल गड्ढा खोदकर पूजा करके, फिर पाट देते हैं. अब यही परम्परा बन गई है. गांव वालों का कहना है कि कभी यह मंदिर गांव में रास्ते पर था मंदिर, फिर सङक बनती गयी, हर बार लेवल बढऩे से थान नीचे होता गया. सडक़ के नीचे 30 साल पुराना शीतला माता का थान सडक़ के करीब 6- 7 फीट नीचे भले ही जमीदौज हो गया, लेकिन यहां रहने वाले लोगों के मन में आस्था आज भी बरकरार है. प्रतिवर्ष होली के बाद 7 दिन तक शीतला माता को ठंडा करने के लिए इस सडक़ पर जल छिडक़ाव किया जाता है. समाज सेवी नथमल खीची ने बताया कि शीतला अष्टमी के लिए सीसी ब्लॉक लगी इस सडक़ की खुदाई कर यहां स्थापित प्रतिमाओं को बाहर निकालकर साफ सफाई की जाती है. इसके बाद महिलाएं घरों से व्यंजन की थाली लेकर माता की पूजा कर मंगल गीत गाती है.
चैत्र कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला माता की पूजा होती:
होली के एक हफ्ते बाद और चैत्र कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला माता की पूजा की जाती है. इसे शीतला अष्टमी या बसोड़ा कहा जाता है. इस दिन माता को बासी खाने का भोग लगाया जाता है. इस बार शीतला अष्टमी 15 मार्च को है. इसके चलते गांव वालों ने पूरी तैयारी कर ली है. 14 मार्च को शीतला माता के पूजन के लिए कई पकवान बनाए जाएंगे और 15 को माता को भोग लगाकर बासी खाना खाएंगे. गरम खाना खाना इस दिन वर्जित रहता है.
मां आरोज्य की देवी, चेचक से बचाती:
माता शीतला को स्वस्छता और अरोग्य की देवा कहा जाता है. मान्यता है कि शीतला अष्टमी या बसोड़ा के दिन माता शीतला की विधि-विधान से पूजा और व्रत करने से घर पर रोग-दोष, बीमारी, महामारी (Epidemic) का खतरा नहीं रहता. साथ ही घर पर सुख-शांति भी बनी रहती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता शीतला को चेचक रोग से मुक्ति की देवी भी माना गया है. वहीं बासी पकवानों का भोग लगाए जाने के कारण इस दिन बसोड़ा कहा जाता है.