
ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस ने सोमवार को 50 अरब डॉलर के रणनीतिक साझेदारी समझौता पर दस्तखत किए. इस समझौते के तहत फ्रांस 12 अत्याधुनिक पनडुब्बियां बनाकर उसे देगा. इस साझेदारी के साथ कैनबेरा ने संकेत दिया है कि वह प्रशांत क्षेत्र के पार अपनी शक्ति प्रदर्शित करना चाहता है.
कैनबेरा में आयोजित एक समारोह में प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने इस दुस्साहसी योजना की प्रशंसा की और कहा कि यह शांति काल में ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा रक्षा निवेश है.
फ्रांस की सरकार समर्थित नेवल ग्रुप इन लड़ाकू पनडुब्बियों का निर्माण करेगा और पहली पनडुब्बी साल 2030 में बनकर तैयार होगा और इसका पहला परीक्षण साल 2031 में किया जाएगा.
हालांकि आलोचकों का कहना है कि यह समझौता देर से किया गया है, क्योंकि ऑस्ट्रेलिया का पश्चिमी और उत्तरी क्षेत्र एक तरह युद्ध का मैदान बन चुका है. अमेरिका, चीन और क्षेत्रीय शक्तियां अपना प्रभाव जमाने के लिए प्रयासरत हैं.
चीन संपूर्ण दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता है जो महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग है. इस समुद्री मार्ग से खासतौर पर अयस्क, खनिजों और ईंधन परिवहन किया जाता है जो चीनी अर्थव्यवस्था के लिए अहम हैं.
अमेरिका का मानना है कि चीन अपने इन दावों को पुष्ट करने के लिए दबंगई पर उतर रहा है और पड़ोसी देशों को धमका रहा है. इस तरह वह प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति बनने की फिराक में है.
ऑस्ट्रेलियाई सेना का कहना है कि संभावित शत्रुतापूर्ण कार्रवाई के समय ये पनडुब्बियां विश्वसनीय संकटमोचक साबित होंगी.
वहीं विश्लेषकों का कहना है कि अब बहुत देर हो चुकी है. ऑस्ट्रेलिया के उत्तर और पूर्व की ओर जल क्षेत्र को लेकर संयुक्त राष्ट्र, चीन और क्षेत्रीय शक्तियों के बीच गहन संघर्ष चल रहा है.
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